यादें
भागती रही दूर तुमसे
समय का अभाव था
दौडती ज़िन्दगी में
न कोई पड़ाव था
जानती न थी
तुम्हारी अहमियत
नादान ही थी
समय गुज़रता गया
दिन पर दिन बीतते गए
कई दशक गुज़र गए
यादें जुडती गयीं
परतें जमतीं गयीं
आज आया है वह पड़ाव
जब यादों की परतें खुलेंगी
एक के बाद एक परत खुलती गई
यादों की याद में खोई रही
इन्हीं के सहारे ये
अकेलेपन की घड़ियाँ
सुख से बीत रहीं हैं
इनके बिना जीना था दूभर मेरा
कौन कहता है ?
यादें सतातीं हैं
रुलातीं हैं
नींदें उड़ातीं हैं
मैंने तो ये जाना है
अपनों के अभाव में
ये ही मन बहलातीं हैं
समय बिताती हैं
अकेलेपन की गठरी का बोझ
न जाने कहाँ उठा ले जातीं हैं |
सविता अग्रवाल "सवि"
भागती रही दूर तुमसे
समय का अभाव था
दौडती ज़िन्दगी में
न कोई पड़ाव था
जानती न थी
तुम्हारी अहमियत
नादान ही थी
समय गुज़रता गया
दिन पर दिन बीतते गए
कई दशक गुज़र गए
यादें जुडती गयीं
परतें जमतीं गयीं
आज आया है वह पड़ाव
जब यादों की परतें खुलेंगी
एक के बाद एक परत खुलती गई
यादों की याद में खोई रही
इन्हीं के सहारे ये
अकेलेपन की घड़ियाँ
सुख से बीत रहीं हैं
इनके बिना जीना था दूभर मेरा
कौन कहता है ?
यादें सतातीं हैं
रुलातीं हैं
नींदें उड़ातीं हैं
मैंने तो ये जाना है
अपनों के अभाव में
ये ही मन बहलातीं हैं
समय बिताती हैं
अकेलेपन की गठरी का बोझ
न जाने कहाँ उठा ले जातीं हैं |
सविता अग्रवाल "सवि"
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