Friday 26 September 2014

नव रात्री पर मेरे कुछ हाइकु

१.
महा पर्व है
नौ दुर्गे की शक्ति का
माँ की भक्ति का

२.
नव दुर्गे माँ
ज़रा-व्याधि को मिटा
चेतना जगा

३.
जय अम्बिके
विपत्ति दूर करे
जय चण्डिके

४.
परिवर्तन
लाये परिशोधन
मन प्रसन्न

५.
माता की भक्ति
सौभाग्य से मिलती
शक्ति भरती

६.
नौ दिन व्रत
संयमित जीवन
बनाता दृढ़

७.
देता जीवन
देवी आराधन में
होता सफ़ल

८.
अखंड ज्योति
धुप दीप नैवेध
पूजा अर्चन

९.
साधक मन
संकट निवारण
ज्योति प्रकाश

सविता अग्रवाल "सवि"



 

हाइकु

१.
टूटती डाल
वृक्षों से अलग हो
काँटा सी हुई
२.
एक ही वृक्ष
समेटे है अनेकों
शाख औ पात
३.
गर्मी जो आई
पानी में खेलकर
मस्ती है छाई
४.
रात अंधेरी
भूत से खड़े पेड़ 
डरूं घनेरी 
५.
गुच्छा फूलों का 
दे रहा सीख हमें 
मिल के रहो 

सविता अग्रवाल "सवि" 

Saturday 13 September 2014

     यादें
भागती रही दूर तुमसे
समय का अभाव था
दौडती ज़िन्दगी में
न कोई पड़ाव था
जानती न थी
तुम्हारी अहमियत
नादान  ही थी
समय गुज़रता गया
दिन पर दिन बीतते गए
कई दशक गुज़र गए
यादें जुडती गयीं
परतें जमतीं गयीं
आज आया है वह पड़ाव
जब यादों की परतें खुलेंगी
एक के बाद एक परत खुलती गई
यादों की याद में खोई रही
इन्हीं के सहारे ये
अकेलेपन की घड़ियाँ
सुख से बीत रहीं हैं
इनके बिना जीना था दूभर मेरा
कौन कहता है ?
यादें सतातीं हैं
रुलातीं हैं
नींदें उड़ातीं हैं
मैंने तो ये जाना है
अपनों के अभाव में
ये ही मन बहलातीं हैं
समय बिताती हैं
अकेलेपन की गठरी का बोझ
न जाने कहाँ उठा ले जातीं हैं |

           सविता अग्रवाल "सवि"