Wednesday 11 June 2014


संस्मरण: पिता जी का प्यार  

  पौ फटते ही चिड़ियों की चहचहाट शुरू हो गई | मेरी खिड़की के एक कोने में चिड़िया ने अपना घोसला बना रखा था | छोटे छोटे  बच्चे चूं चूं कर रहे थे | थोड़ी देर में मैंने देखा कि एक चिड़ा कहीं से उड़ कर आया और कुछ देर के लिए चूं चूं की आवाज़ बंद हो गई लगा जैसे बच्चों को खाना मिल गया हो और वे शांत हो गए थे | मेरे मस्तिष्क में कई दशक पुरानी एक घटना घूम गई ..जब मैं लगभग सात या आठ वर्ष की थी | एक बार अपनी दादी के साथ उनके मायके में किसी लडकी की शादी में गई थी | विवाह के उत्सव में बहुत से सगे संबंधी आये हुए थे | दादी ने मुझे भी सब से मिलवाया | मेरे साथ की एक लडकी मिल गई बस मैंने उसके साथ दोस्ती कर ली उसका नाम इंदु था | विवाह में अनेकों रीति –रिवाज़ हो रहे थे हम दोनों को तो अपने खेलने में ही आनंद आ रहा था | सभी आपस में हंसी मज़ाक करते इधर से उधर घूम रहे थे | हर घंटे कुछ न कुछ खाने के लिए आ जाता था | महमानों का तांता लगा था |

  घर के बाहर कच्ची सड़क पर पानी का छिडकाव हो रहा था उस मिटटी की सौंधी सौंधी खुशबू से मन प्रसन्न हो रहा था | कुछ बुज़ुर्ग घर के बाहर कुर्सियां डाल कर बैठ गए और बातें कर रहे थे | कोई किसी की लडकी बड़ी हो गई है उसके लिए लड़का ढूँढने की बात करता तो कोई लड़के के लिए कोई लडकी बताओ कहता दिखाई दे रहा था | बीच बीच में कभी कभी हंसी का ज़ोरदार ठहाका लग जाता था | पूरी गली को रंग बिरंगी झंडियों से सजाया गया था |

   धीरे धीरे शाम हुई और बारात आने की तैयारी शुरू हो गई | एक कमरे में लडकी जिसका नाम सुमन था दुल्हन बनी बैठी थी | तभी बारात के बैंड बाजे की आवाजें आने लगी | मैं और इंदु भाग कर बाहर गए और बारात का इंतज़ार करने लगे | बारात आ गई –बारात आ गई कहते सभी खुश थे | दुल्हे की आरती उतारी गई | जयमाला का कार्यक्रम हुआ | सभी मिठाइयों का आनंद ले रहे थे | फेरों का समय आते आते मैं सो गई | सुमन जिसे मैं बुआ जी कहती थी उसकी विदाई सुबह को होनी थी | सुबह होते ही मैंने देखा कि कुछ बच्चे सुमन के साथ उनके ससुराल जाने की तैय्यारी

में लगे थे मेरे साथ खेलने वाली इंदु भी तैयार हो गई थी | क्यों कि अगले दिन सभी बच्चे सुमन के साथ वापिस आनेवाले थे |

मैंने भी सुमन बुआ के साथ जाने की जिद्द की | दादी के बहुत मन करने पर भी मैं नहीं मानी और रोने लगी तब सभी ने कहा की ठीक है इसे भी भेज दो और मैं भी साथ चली गई |

  सुमन की ससुराल में उसकी सास ने सबकी खूब खातिर की | हम सभी ने पकवानों का जी भर आनंद उठाया | अगले दिन सुमन की सास ने सुमन के साथ उसके घरवालों के लिए बहुत सा सामान दिया जिसमें इंदु के लिए एक गुडिया और मेरे लिए कोई और खिलौना भी दिया | परन्तु मुझे तो इंदु की गुडिया ही पसंद आयी और मैं रोने लगी | तब कुछ लोगों ने समझाया की घर जाकर ले लेना | बस मैं घर पहुँचने का इंतज़ार करने लगी | किसी तरह घर पहुंचे तो मैंने अपनी दादी से कहा कि मुझे तो वह

गुडिया ही चाहिए | इंदु भी अपनी जिद्द पर अटल थी कि यह गुडिया तो मेरी है मैं नहीं दूंगी | दादी ने बहुत समझाया और किसी तरह मुझे अनेकों लालच देकर वापिस घर ले आयी और मेरे पिताजी से कहा कि यह गुडिया के लिए बहुत रो रही थी | घर आकर भी मैंने गुडिया की जिद्द नहीं छोडी | क़रीब चार दिन बाद मैंने देखा कि पिताजी अपने हाथ में खुछ लेकर आये है और उन्होंने मुझे एक कमरे में बुलाकर कहा कि आँखें बंद करो- देखो मेरी प्यारी बिटिया के लिए परी ने क्या भेजा है – बचपन में दादी से परियों की कहानी सुन रखी थीं तो विश्वास हो गया कि सच में परी ने कुछ भेजा है | पिताजी ने कहा बोलो क्या चाहिए तुम्हें ? मेरे दिमाग में तो गुडिया का भूत ही सवार था इसलिए मैंने कहा मुझे तो गुडिया चाहिए | पिताजी ने कहा आँखे खोलो मैंने आँखें खोली तो देखा सुनहरे बालों वाली गुलाबी कपडे पहने बड़ी सी एक गुडिया मेरे हाथों में थी | मेरी खुशी का ठिकाना न रहा और मैं झट से पिताजी से लिपट गई | आज भी वह घटना याद आती है तो आँखें नम हुए बिना नहीं रहती | क्या पिता का प्यार ऐसा ही होता है ?

                    सविता अग्रवाल “सवि”