कहानी
समयानुसार एक दिन माँ तृप्ति की एक आँख निकाल कर पत्थर की आँख लगा दी गयी | और
टीना को बिना बताये ही कि किसकी आँख उसे लगाई जा रही है, माँ की आँख उसे लगा दी गयी | तीन चार दिन तक पट्टी
बंधी रही और जब पट्टी खुलने का दिन आया तो टीना से डाक्टर व्यास ने पूछा कि तुम
सबसे पहले किसे देखना चाहोगी ? टीना ने कहा कि मैं उसे देखना चाहूंगी जिसकी आँख से
मैं सब देख सकूंगी | धीरे धीरे टीना की आँख से पट्टी खोली गयी तो टीना ने देखा कि
माँ सामने खड़ी है और उसकी एक आँख पर पट्टी बंधी है टीना की दोनों बाँहें माँ के
आलिंगन के लिए खुल गयीं | माँ ने भी टीना को गले से लगाया और कहा - बेटी ! अब तुम यह संसार जो बहुत खूबसूरत है इसे देख सकोगी और अनुभव कर सकोगी | टीना का दिल भर आया और वह यूं ही देर तक माँ से लिपटी रही | तभी डाक्टर व्यास ने टीना से कहा कि टीना अब तुम अपनी माँ की आँख से सारा संसार देख सकती हो | माँ का यह त्याग और ऋण टीना कभी नहीं चुका पायेगी | यही सोचते सोचते वह समय आ गया जब सूरज अस्ताचल में प्रवेश कर रहा था इस मनमोहक दृश्य के लिए टीना पांच बजे से ही खिड़की में आकर खड़ी हो जाती थी वह दृश्य देखना टीना को बहुत अच्छा लगता था |वह भाग कर अन्दर गयी और माँ से लिपट कर बोली _माँ ! मैं हर जन्म में तुम्हारी ही बेटी बनूँ, यही कामना है मेरी |
सविता अग्रवाल “सवि”