Sunday 1 November 2015

करवा चौथ पर कुछ हाइकु

१ 
माथे बिंदिया
हाथ सजे कंगन
पूजता – मन
निकला चंदा
अर्ध्य दें सुहागनें
रीत हो पूरी
पति को पाया
साल में एक बार
ये दिन आया
४ 
शृंगार किये
सुहागिनों की टोली
मंदिर चली
थालियाँ सजीं
सुहागिनों की पूजा
चंदा ने सुनी
६ 
नारियाँ सजें
करवा चौथ पूजें
पानी न चखें
७ 
पेट हैं खाली
उमंगें भरे मन
सजाएँ थाली
हाथों में दीप
पति उम्र पाने को
चंदा से भीख
         सविता अग्रवाल "सवि"

Monday 29 December 2014


नव वर्ष की नई डायरी

एक और नई डायरी लेकर

फिर एक नव वर्ष आया है

हर दिन लिखा जायेगा

एक नया पन्ना

हर दिन की होगी नई गाथा

हर सुबह की होगी नई आशा

हर रात बुनेगी नया सपना

हर उषा में दमकती किरणें होंगी

चंदा में चमकती चांदनी होगी

हर पन्ने पे बिखरेगा नया नूर

हर कलम में होगा नया सुरूर

आतंकियों का न भय होगा

अपनों से न विछोह होगा

नव वर्ष मिलाएगा बिछड़े सभी

नव वर्ष बनाएगा रिश्ते कई

उन रिश्तों की डोरी में स्नेह होगा

धरती पे बरसता मेंह होगा

फ़सलें लहरायेंगी खिलेंगे सुमन

खुशबुओं से महक उठेंगे चमन

दमन पर न किसी के दाग़ होगा

नारी का न अपमान होगा

मनुजता का न नंगा नाच होगा

नवजात को न मारा जायेगा

दुल्हनों को न जलाया जायेगा

हर घर में जन्मेगा गाँधी कोई

लायेगा अहिंसा की आंधी वही

शांति के दूत यहाँ होंगे

पाठशालाओं में मानवता के पाठ होंगे

धोकर कलुषित मन सबके

जग में एक नई सुबह होगी

नव वर्ष की इस डायरी में

हर शाम एक सुखद खबर होगी |

हर शाम एक सुखद खबर होगी ||

      ~~ सविता अग्रवाल “सवि” ~~  

Tuesday 16 December 2014



"आई हूँ मैं द्वार तेरे"

न्यारी न्यारी चीज़ें ले कर

थाली खूब सजायी है

तुझे रिझाने की खातिर

मैं द्वारे तेरे आई हूँ

      मंदिर के दर बैठी बाला

      माँग की आस लगाये है

      पंथ निहारे बैठा बौना

      पल पल हाथ फैलाये है

लुटिया में गंगा का पानी

छलकत छलकत जाए है

मुदित मन मुस्कान बिखेरे

जो दर्शन तेरा पाए है

      जीवन दाता झोली भर दो

      झंझाओं से मुक्ति कर दो

      ज्योति-पुंज अवलोकित कर दो

      चिर-मिलन की आस को मेरी

      आशीषों से पूरी कर दो

      पलकें मूँदूं , बंद पलक में

      आभा अमिट प्रज्ज्वलित कर दो

हो कर के आभारी तेरी

द्वार पे तेरे आऊँगी

तेरी करुणा और दया का

ऋण मैं दे पाऊँगी

      दान में लेकर सब कुछ तुझ से

      क्या दिखलाने आई हूँ ?

      भीख मेँ दे दो भक्ति अपनी

      बस यही माँगने आई हूँ

द्वार तुम्हारे आई हूँ मैं

द्वार तुम्हारे आई हूँ

            ~ सविता अग्रवाल "सवि" ~

Friday 26 September 2014

नव रात्री पर मेरे कुछ हाइकु

१.
महा पर्व है
नौ दुर्गे की शक्ति का
माँ की भक्ति का

२.
नव दुर्गे माँ
ज़रा-व्याधि को मिटा
चेतना जगा

३.
जय अम्बिके
विपत्ति दूर करे
जय चण्डिके

४.
परिवर्तन
लाये परिशोधन
मन प्रसन्न

५.
माता की भक्ति
सौभाग्य से मिलती
शक्ति भरती

६.
नौ दिन व्रत
संयमित जीवन
बनाता दृढ़

७.
देता जीवन
देवी आराधन में
होता सफ़ल

८.
अखंड ज्योति
धुप दीप नैवेध
पूजा अर्चन

९.
साधक मन
संकट निवारण
ज्योति प्रकाश

सविता अग्रवाल "सवि"



 

हाइकु

१.
टूटती डाल
वृक्षों से अलग हो
काँटा सी हुई
२.
एक ही वृक्ष
समेटे है अनेकों
शाख औ पात
३.
गर्मी जो आई
पानी में खेलकर
मस्ती है छाई
४.
रात अंधेरी
भूत से खड़े पेड़ 
डरूं घनेरी 
५.
गुच्छा फूलों का 
दे रहा सीख हमें 
मिल के रहो 

सविता अग्रवाल "सवि" 

Saturday 13 September 2014

     यादें
भागती रही दूर तुमसे
समय का अभाव था
दौडती ज़िन्दगी में
न कोई पड़ाव था
जानती न थी
तुम्हारी अहमियत
नादान  ही थी
समय गुज़रता गया
दिन पर दिन बीतते गए
कई दशक गुज़र गए
यादें जुडती गयीं
परतें जमतीं गयीं
आज आया है वह पड़ाव
जब यादों की परतें खुलेंगी
एक के बाद एक परत खुलती गई
यादों की याद में खोई रही
इन्हीं के सहारे ये
अकेलेपन की घड़ियाँ
सुख से बीत रहीं हैं
इनके बिना जीना था दूभर मेरा
कौन कहता है ?
यादें सतातीं हैं
रुलातीं हैं
नींदें उड़ातीं हैं
मैंने तो ये जाना है
अपनों के अभाव में
ये ही मन बहलातीं हैं
समय बिताती हैं
अकेलेपन की गठरी का बोझ
न जाने कहाँ उठा ले जातीं हैं |

           सविता अग्रवाल "सवि"