Friday 2 May 2014


श्रमिक दिवस पर मेरे हाइकु

स्वेद बहाकर
थक घर आकर
रात बिताते
   २.
आराम त्याग
धरती को दलते
जन पलते 
   ३.
न कोई चिंता
सुख की हैं करते
चैन से सोते 
  ४.
न कोई स्वप्न
पूरा देश अपना
श्रम जीवन
  ५.
यही विजय
हलधर कहते
श्रम की जय
 
सविता अग्रवाल "सवि"

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