श्रमिक दिवस पर मेरे हाइकु
स्वेद बहाकर
थक घर आकर
रात बिताते
२.
आराम त्याग
धरती को दलते
जन पलते
३.
न कोई चिंता
सुख की हैं करते
चैन से सोते
४.
न कोई स्वप्न
पूरा देश अपना
श्रम जीवन
५.
यही विजय
हलधर कहते
श्रम की जय
सविता अग्रवाल "सवि"
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