हाइकु
निर्मल जल
बहता कलकल
कंठ तरल
बहते रंग
मन भाव लेकर
त्रिवेणी संग
रचना रच
नवोदित लेखक
हुआ अधीर
विदेश आना
भुला गया डगर
सही राह की
युगों का तत्व
लिपियों में सुप्त है
खोए पन्नों सा
गायत्री मंत्र
उच्चारण शुद्ध हो
मनवा शांत
निर्मल जल
बहता कलकल
कंठ तरल
बहते रंग
मन भाव लेकर
त्रिवेणी संग
रचना रच
नवोदित लेखक
हुआ अधीर
विदेश आना
भुला गया डगर
सही राह की
युगों का तत्व
लिपियों में सुप्त है
खोए पन्नों सा
गायत्री मंत्र
उच्चारण शुद्ध हो
मनवा शांत
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