Friday 10 August 2012



" प्रीत और प्रतिकार "
माँगती रह गई हमेशा
प्यार का उपहार तुमसे
सजल नयनों में सजाकर
साँझ का श्रृँगार तुमसे
मौन मन आकुल सा मेरा
नीर पीता रहा विरह का
थक गई वेदन भी उर में
माँग कर अधिकार तुमसे
अनमिले वरदान मेरे
डूब कर रह गये भँवर में
दीप जलता रहा तिमिर में
बुझी सी एक आस लेकर
चाहा था मधुमास मैंने
वह तो मुझको मिल न पाया
रात पतझर सी मिली यूँ
छा गया कुम्हलाया साया
बाँध बाँधा है स्वयं पर
श्राप श्वांसों में समाया
अहसास दर्दों का छुपा है
तन में बंदी बन के मेरे
कह कर अनकही कहानी
आज उसको दूर कर दो
काजल में डूबे सपन को
धवल बन नयनों में भर दो
रात अमा की काटी मैंने
बन पूनम चाँदी तुम कर दो
प्यार की देहरी पर आकर
सुप्त हॄदय स्पंदित कर दो
कल्पना के क्षण अनोखे
याद में रह रह कर आते
शेष बस, अवशेष कुछ हैं
झोली में मेरी गिर जाते
मौन समर्पित कलिकाओं से
अधर बंद मेरे रह जाते
फूल संग शूल क्यूँ रहते ?
राज़ है क्या मुझको समझाते
आकर तुम एक बार मुझसे
झूठा ही, पर प्यार जताते
प्रीत है प्रतिकार वह ना
मनुहारी है प्रीत बताते
प्रीत और प्रतिकार के इस
द्वंद से तुम मुक्त कराते ॥ 
                   ~~ सविता अग्रवाल सवि”~~

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