एक
शहीद की छोटी सी आशा
मैंने अपना धर्म
निभाया
सीने पर खाकर गोली को
भारत माँ का क़र्ज़
चुकाया
पर छोड़ा परिवार है
पीछे
बालक नन्हा, माँ –बापू
बालक नन्हा, माँ –बापू
पत्नी का सुहाग बना था
कुछ वर्ष मिले थे और
कुछ दिन
आशा है एक मेरी, जग से
तुम्हें चैन से सोने
में
मैंने जो कुर्बानी दी
है
उस पर तुम उपकार करो
कभी कभी मेरे फोटो पर
हार सुमन का दान करो
मेरे बूढ़े माँ –बापू का
मरहम बन उपचार करो
अंतिम साँसें जब ली
थीं मैंने
बस इतना ही ध्यान किया
देश
मेरे में रहने वालों
तुम सब को नमन किया |
~ सविता अग्रवाल “सवि”~
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